Friday, April 24, 2009

मन

सुख की लालसा से ही मन भटकता ही की वहां सुख मिलेगा ?

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तुम स्थिर बैठ जाओगे तो मन ठीक है ही, तुम्हे ठीक करने की जरूरत नही है

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मन और विचार एक है, अलग नही है, क्यों की मन से ही विचार आते हैं

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जब मन अशांत हो, तो गाने- बजाने और भजन करने से मन ठीक हो जाता है

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मन को जितना हठ योग है, मन से हार मानकर सरणागत होना प्रेम है,
प्रेम मैं सदा हार ही होती है, देखो हम जिसे प्रेम करते हैं उसके सामने झुकते हैं
वह चाहे कुछ भी कहे, चाहे कुछ भी करे

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दुसरे को न देखकर अपने मन को देखो की मन मैं उसके प्रति क्या भाव उठा है ?

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जब हम दुखी होते हैं तो मन मैं रहते है, जब हम सुखी होते हैं तो आत्मा में रहते हैं
मन का स्वभाव है दुखी होना और आत्मा का स्वभाव है खुश रहना, आनंद में रहना

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मन को जिस काम के लिए जितना मना करो, मन उतना ही उस काम को करना चाहता है,
इस लिए मन को मना मत करो, जो मन कर रहा है करने दो, बस आप शरीर से नही


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मन को अपने आप में लगाओ, बाहर नही लगने दो, क्योंकि बाहर लगने से दुःख ही होगा
ध्यान से मन शांत होता है, स्थिर होता है, हमें ध्यान करना चाहिए
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जब मन शांत होगा तो आत्मा का दर्शन होगा, जिस तरह जब तालाब का पानी स्थिर,
शांत होता है तो हमारा प्रतिबिम्ब उसमे दीखता
ही

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ध्यान करने से मन साफ़ होता है, जैसे पानी गंदा है पानी में हलचल है,
तो हम अपना प्रतिबिम्ब नही देख पाते है, उसी तरह मन में हलचल है,
तो हम अपना स्वरुप नही देख पाते, इसलिए ध्यान करना ज़रूरी ही


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जब
कोई आप के साथ कुछ समय के लिए रहता है तब उसे जाने पर मन दुखी हो जाता है
क्योंकि आप इस दौरान उस व्यक्ति से बंध गए,
आप जब ज्ञान में उतर जाओगे तो पता चलेगा की आप ना

बंधते हैं, ना ही दुखी होते हैं

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मन हमेशा नीचे की और जाता है, ग़लत कामों और विषय वासनाओं में
मन को मारो नही, सुधारो, साफ़ करो
जब मन साफ़ होता है तो भक्ति, निष्ठा और प्रेम का उदय होता है

1 comment:

Avinash said...

Thans sir, Isse padkar man ko bahut shanti mili