Thursday, July 3, 2008

6/28/2008

Servant and Master
Being a servant is not being a slave, but being a servant is living the dignity of the Master, dissolving into the Master।

सेवक होना गुलाम होना नहीं है, परन्तु सेवक होना मालिक की पदवी पाकर जीना है, मालिक मैं मिल जाना है।

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