प्राचीन वैदिक ज्ञान की शुद्ध परम्परा को आधुनिक युग की आवश्यकता मी ढालते हुए , श्री श्री रवि शंकरजी दिव्यता, सहजता, सरलता, आत्मीयता और प्रेम की गरिमा को अपने मी समेटे हुए, पृथ्वी पर जीवन को सुशोभित करने आये है। विश्व भर वे मानव-उत्थान का नेतृत्व कर रहे हैं । अनेक राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय उपाधियों से इन्हे अलंकृत किया गया हैं ।
श्री श्री का जन्म 13 May को हुवा इस लिए वोह कहते है " मैं तेरा और तेरा मैं "
उनका जन्म दक्षिण भारत के एक सम्पन परिवार मे हुआ । चार वर्ष की चोटी सी अवस्था मे ही आपको गीता के शलोक कण्ठस्थ थे । बचपन मे घंटो ध्यान मे बैठना और पूजा करना आपके प्रिय खेल थे । सत्रह वर्ष की आयु मे आपने आधुनिक विज्ञान और वेदों का अध्ययन सम्पन्न किया । उसके बाद आपने एकांत साधना और संत - संगति मे कई वर्ष बिताये । सन् १९८४ मे श्री श्री रवि शंकरजी की देश-विदेश में यात्राएं और जग-कल्याण हेतु असंख्य लोगो को चिंता व तनाव से मुक्ति का मार्ग-दर्शन आरंभ हुआ ।
गुरुदेव में एक साथ ही यीशु का स्नेह, बुद्ध का मौन, कृष्ण की बल चपलता और आदि शंकराचार्य का विवेक है । आपके प्रेम एवं ज्ञान के प्रकाश से हजारों अंधकार से भरे जीवन प्रकाशमय हो रहे है । जीवन एक उत्साह है , जीवन एक प्रेम और आनंद है , इस बात का अनुभव आपके सम्पर्क मे आने से सहज ही होता है ।
आपकी सभाओं मे आने वाले स्त्री एवं पुरूष, युवा एवं वृद्ध आस्तिक एवं नास्तिक, साधारण व्यक्ति , विभिन्न विचार - धारा से प्रभावित सभी व्यक्ति अपने ह्रदय में एक नये प्रेम एवं जागृति का अनुभव करते हैं । अनेक की मानसिक बाधाये दूर होती है और उन्हें नये जीवन की प्रेरणा मिल रही है ।
उपनिषद् मैं सद् गुरु के पाँच लक्षण बताए गए हैं
समृद्धि, ज्ञान रख्सा, दुःख - क्षय, सुख - आवीभार्व एवं सर्वसम्वधॅन -
ये पांचो लक्षण हर समय आपके आस पास प्रकट पाए जाते हैं गुरुदेव की युवावस्था, श्वेत परिधान एवं ज्ञान की विशालता को देखकर ह्रदय में दक्षिणामूर्ति की स्मृति साकार हो उठती है । आपके मौन में मुखरता एवं मुखरता में मौन की सुखद अनुभूति होती है. आपके साकार रूप में भी अवर्णनीय निराकार का आभास मिलता है. आप के समक्ष आने से ही मन की अनेक जटिल समस्याओ का स्वतः समाधान हो जाता है, मन के प्रस्न खो जाते हैं एवं शांति का अनुभव होता है. बाहरी जीवन में पुष्टि और आंतरिक जीवन में तृप्ति मिलती है . प्रतिदिन सायंकाल में भक्त-प्रेमीजनों के साथ सत्संग के समय भजन एवं ज्ञान-चर्चा के द्वारा आप जीवन को एक प्राथॅना में बदल देते हैं. सभी और आनंद एवं उत्सव भावना की लहर फेल जाती है. कभी- कभी आप सत्संग के समय भावमग्न होकर नृत्य करने लगते हैं तथा कभी आपके आसपास तरह-तरह के फूलों एवं चन्दन की सुगंध से वातावरण महक उठता है.
ऐसे दिव्य सद् गुरु के आवीभार्व से मानवता को नई दिशा मिल रही है.
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