Limited Senses, Unlimited Desire
Actually, the real craving of the mind, of the being, is for Divine Love, for unlimited joy. Every sole is craving for unlimited joy, joy which has no boundaries, but senses cannot provide them with what they are searching for through the senses. The capacity to enjoy for our senses is limited. But the desire is unlimited. वास्तव में, मन की, जीव की लालसा, इश्वर्य प्रेम , असीम आनंद के लिए है. प्रत्येक आत्मा को असीम आनंद की लालसा है, आनंद जिसकी कोई सीमा न हो, परन्तु इन्द्रियां जिनके मध्यम से वेह उसे खोज रहा है वेह आनंद नहीं दे सकती. हमारी इन्द्रियों से प्राप्त होने वाला आनंद सीमित है. परन्तु इच्छा असीमित है.
Friday, December 26, 2008
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