Thursday, November 19, 2009
Om Namah Shivay, Jai Jai Shiv Shambho - most melodious by Rishi Nitya Pragya
Om Namah Shivay, Jai Jai Shiv Shambho - most melodious by Rishi Nitya Pragya
Saturday, October 17, 2009
Shambho Mahadeva - Shiv Bhajan by Dr Manikantan Menon
Wednesday, October 14, 2009
Sakha Bhav & Sakshi Bhav vcd 1 talk 2 part 2
Guruji's Hindi talks from the VCD Series Guru Satsang। by H H Sri Sri Ravi Shankar Guruji's Knowledge ( Art Of Living)
Sakha Bhav & Sakshi Bhav vcd 1 talk 2 part 1
Guruji's Hindi talks from the VCD Series Guru Satsang। by H H Sri Sri Ravi Shankar Guruji's Knowledge ( Art Of Living)
Sunday, September 20, 2009
Avtaar Ban Jao - Guru Satsang vcd 1 - 1
Guruji's Hindi talks from the VCD Series Guru Satsang। by H H Sri Sri Ravi Shankar Guruji's Knowledge ( Art Of Living)
Avtaar Ban Jao - Guru Satsang vcd 1 - 2
Guruji's Hindi talks from the VCD Series Guru Satsang। by H H Sri Sri Ravi Shankar Guruji's Knowledge ( Art Of Living)
Sunday, September 6, 2009
Sunday, July 5, 2009
भीतर से जुड़ जाना
योग का मतलब भीतर से जुड़ जाना , जैसे की हम अपने मोबाइल को चार्ज करते हैसंसार का काम है बात करते रहना. क्या आप मरे हुवे फोन से बात कर सकते है ? नही नाआप को फिर से फोन को दुबारा चार्ज करना पड़ता है ना?
ठीक उसी तराहा साधना करना भी ज़रूरी है, हनुमान जी प्रति दिन 20 घंटे ध्यान ( मेडिटेट) करते थेप्रसन होकर घुल मिलकर सहजता या भोलेपन के साथ काम करोसाधना धीरज बनाती हैचमत्कार होता है की नही ?डबलचार्ज हो जाते हो ना ?
कुछ लोग होश से काम करते है, मस्त नही रहते.
कुछ सिर्फ़ मस्त रहते है, होश से काम नही करते.
ऐसे लोग लंगडे है, मस्ती और होश दोनो का ईस्तमाल करके चलना
आप देखे जो लोग मोबाइल का खूब इस्तेमाल करते है, तो उनके मोबाइल की बॅटरी मर जाती है, फ्लॅट हो जाती है.फिर आप उसे चार्ज करते हो फिर आप किसी से बात कर सकते हो.क्या मरा हुआ फोन कुछ काम का है ?क्या आप ऐसे फोन से किसी से बात कर पाएँगे ? अगर ऐसा करेंगे तो क्या दूसरा व्यक्ति आप को सुन पाएगा ? नही ना!
हमारी ज़िंदगी का भी कुछ ऐसा ही है. हम डेड सेल फोन की तरह काम करते रहते हैऔर हमे पता भी नही होता. साधना आप का चारजर हैइससे आप खुद से जुड़ सकते है
जब हम दुनिया से बात करते रहते है तो हमारी शक्ति कम हो जाती है, हम थक जाते हैतो साधना द्वारा हम फिर से उस शक्ति को जुटा पाते है, फिर हमारी प्राथना सुनी जाती है
मरे हुवे फोन से जैसे हमारी आवाज़ दूसरा कोई सुन नही पातामगर साधना द्वारा आप की आवाज़ ताकतवर हो जाती है और साधना प्राथना बनकर सुनाई दी जाती है
Friday, June 19, 2009
प्रेम
प्रेम अनुभव की चीज़ नही है, वह स्वयं अपने आप में है, जब आप किसी से मिलते हो, मिलते ही खुश हो जाते हो, खुश होते हो.इसके लिए आपने कोई प्रयत्न नही किया, यह अनुभव हुआ या अपने आप हुआ ?
प्रेम माँगने से कम होता है, देने से बढ़ता है. क्यों की हर व्यक्ति प्रेम चाहता है. प्रेम चाहने से नही, देने से होता है.
अपेक्षा और चाह छोड़ो, हँसो और हंसाओ. प्रेम करो, प्रेम बाँटो, आपका स्वरूप वही है
प्रेम में डूब जाना जीवन है, प्रेममय हो जाओ
मनुष्य का प्रकृति की और से स्वाभाव प्रेम का ही है, यह न घटता है न ही बढ़ता है,यह उसी प्रकार है, जैसे पानी का स्वाभाव है, शीतल रहना
देखने से, मिलने से प्रेम होता है, प्रेम से प्यार को जाता है. प्यार से त्याग हो जाता है, फिर त्याग ज्ञान में बदल जाता है की में वही हूँ.
हम जिससे प्रेम करते हैं, उसकी हर बात बहुत ध्यान से सुनते है. उसका हर काम, हर बात बहुत ही अच्छी लगती है, सुंदर लगती है. सबसे प्रेम करो, सब सुंदर लगेंगे.
प्रेम व्यकाती से मत करो, उसकी आत्मा से, चेतना से करो. व्यक्ति से प्रेम करोगे तो आसक्त हो जाओगे. उलझन पैदा होगी, फिर उलझ जओगे
तुम दानी बनो, धन का नहीं, ज्ञान का.दुःख का नहीं, सुख का, अशांति का नहीं, शांति का.उदासी का नहीं, प्रेम का दान करो
तुम्हे, हूमें, कुछ नहीं करना पड़ता. परमात्मा ने बहुत प्रेम दिया है.जितना बाँटते है, उससे दस गुना बढ़ता है
ज्ञान तथा प्रेम के रास्ते में चलने से ऐसा देखने मैं आया है की जो इस रास्ते को अपनाता है, वह आनंद, प्रेम और खुशी पाता है
Monday, June 8, 2009
गुरु के पास होना
(are you in some ways close to us always?)
श्री श्री: आस पास नहीं , में तो तुम्हारे पास पास हूँ
(not in some ways - in all ways I am close to you)
Friday, May 22, 2009
प्रीता जी पहेली बार गुरूजी से मिले - पढिये उनका अनुभव
- प्रीता व्यास
एक बहुत खूबसूरत सा शब्द है -"इत्तिफाकन". कभी- कभी होता यूँ है जीवन में कि आप किसी से मिलते हैं और आपको लगता है कि ये मिलना तो बस इत्तिफाकन हुआ।
क्या वाकई मुलाकातें इत्तिफाकन होती हैं? सिर्फ मुलाकातें ही क्यों, गौर करें तो दरअसल जीवन में कुछ भी इत्तिफाकन नहीं होता- सिर्फ हमें ऐसा भ्रम होता है, क्योंकि हम स्थिति को बहुत सतही तौर पर लेते हैं. हमें आदत ही नहीं रह गई है बात को गहराई से सोचने की।
तो सतही नज़रिए से इत्तिफाकन और गहरे नज़रिए से उस महाशक्ति के मास्टर प्लान के तहत हम अप्रैल के पहले सप्ताह में बाली में मिले. हम यानी मै और श्री श्री श्री रविशंकर जी- गुरूजी. आर्ट ऑफ़ लिविंग के ज़रिये शायद दुनिया में कम ही मुल्क होंगी जहाँ उनका नाम ना पहुंचा हो।
ना, मै आर्ट ऑफ़ लिविंग के कोर्स के लिए नहीं गई थी. ना, मैंने कभी सोचा भी नहीं था की मै गुरूजी से मिलूंगी, ना, मुलाक़ात से पहले तक मुझे इसके बारे में कतईपता नहीं था. हेमंत ने मुझे एक बार आर्ट ऑफ़ लिविंग का कुछ मैटर अनुवाद के लिए दिया था.२००८ के शुरुआत की बात है. तब अनुवाद के दौरान मुझे महसूस हुआ की हम निकट भविष्य में मिलने वाले हैं, पर कब और कहाँ ये मेरी बुद्धि नहीं पकड़ सकी।
गुरूजी जानते थे की उनका ये संदेश मैंने आधा, अधूरा ग्रहण किया है. हमें दरअसल शाम ५ बजे मिलने था लेकिन इसमें भी देर हुई. जब मैंने इस सबका ज़िक्र गुरूजी से किया तो बोले कि- "मै जानता हूँ. तुझे अगर सालों पहले पता होता है कि मिलने वाले हैं तो मुझे क्या घंटे भर पहले का भी भान नहीं होगा. मै कुछ कहती और बीच से ही गुरूजी टोक देते कि मै जानता हूँ. फिर उन्होंने कहा कि- आओ कुछ देर बातें करते हैं।
पूर्णिमा कि रात, होटल अयाना वालों ने गुरूजी के स्वागत के लिए जिस फ्रंजिपनी उपवन के पथ को ३६५ दीयों से सजाया था, उस पथ पर हम २० मिनिट साथ रहे. शब्द नहीं थे हमारे बीच ज्यादा लेकिन बातें काफी हुईं.२० मिनिटों में २० युग कि बात यदि आपको लगता है कि संभव है- तो हुई. गुरूजी कि स्निग्ध मुस्कान और कोमल स्वर - मुखर और मौन जो भी बातें हुई कम से कम मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं।
पिछले कुछ सालों से तमाम कोशिशों के बाबजूद कहीं न कहीं अंदरूनी तौर पर कमज़ोर हो रही थी, थक रही थी, शायद इसे लडखडाना भी कहा जा सकता है. इस बातचीत से इतना तो हुआ कि .........चलें यूँ समझें कि जैसे पैर में तकलीफ हो, चला नहीं जा रहा हो, चलना ज़रूरी भी हो,चलना अकेले भी हो तो ऐसे में कोई मज़बूत लाठी आपको थमा दे कि लो अब चलो।
फिलहाल बस इतना ही. २० युगों कि बात- भला ए़क पेज में अटेगी?
२० युग चाहिए लिखने को, २० युग चाहिए पढ़ने को- अब इतना वक्त ना आपके पास हाथ, ना मेरे पास.....सुनना ही है तो फिर क्यों न सीधे गुरूजी को ही सुना जाये?
Monday, May 18, 2009
Art Of Living - Sydney Advance Course 2009 - Boat Cruise
The Art Of Living Sydney Advance course 4 - 7 April 2009 with Guruji H H Sri Sri Ravi Shankar Boat Cruise in Sydney Harbour
Friday, April 24, 2009
मन
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तुम स्थिर बैठ जाओगे तो मन ठीक है ही, तुम्हे ठीक करने की जरूरत नही है
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मन और विचार एक है, अलग नही है, क्यों की मन से ही विचार आते हैं
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जब मन अशांत हो, तो गाने- बजाने और भजन करने से मन ठीक हो जाता है
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मन को जितना हठ योग है, मन से हार मानकर सरणागत होना प्रेम है,
प्रेम मैं सदा हार ही होती है, देखो हम जिसे प्रेम करते हैं उसके सामने झुकते हैं
वह चाहे कुछ भी कहे, चाहे कुछ भी करे
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दुसरे को न देखकर अपने मन को देखो की मन मैं उसके प्रति क्या भाव उठा है ?
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जब हम दुखी होते हैं तो मन मैं रहते है, जब हम सुखी होते हैं तो आत्मा में रहते हैं
मन का स्वभाव है दुखी होना और आत्मा का स्वभाव है खुश रहना, आनंद में रहना
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मन को जिस काम के लिए जितना मना करो, मन उतना ही उस काम को करना चाहता है,
इस लिए मन को मना मत करो, जो मन कर रहा है करने दो, बस आप शरीर से नही
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मन को अपने आप में लगाओ, बाहर नही लगने दो, क्योंकि बाहर लगने से दुःख ही होगा
ध्यान से मन शांत होता है, स्थिर होता है, हमें ध्यान करना चाहिए
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जब मन शांत होगा तो आत्मा का दर्शन होगा, जिस तरह जब तालाब का पानी स्थिर,
शांत होता है तो हमारा प्रतिबिम्ब उसमे दीखता ही
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ध्यान करने से मन साफ़ होता है, जैसे पानी गंदा है पानी में हलचल है,
तो हम अपना प्रतिबिम्ब नही देख पाते है, उसी तरह मन में हलचल है,
तो हम अपना स्वरुप नही देख पाते, इसलिए ध्यान करना ज़रूरी ही
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जब कोई आप के साथ कुछ समय के लिए रहता है तब उसे जाने पर मन दुखी हो जाता है
क्योंकि आप इस दौरान उस व्यक्ति से बंध गए,
आप जब ज्ञान में उतर जाओगे तो पता चलेगा की आप ना
बंधते हैं, ना ही दुखी होते हैं
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मन हमेशा नीचे की और जाता है, ग़लत कामों और विषय वासनाओं में
मन को मारो नही, सुधारो, साफ़ करो
जब मन साफ़ होता है तो भक्ति, निष्ठा और प्रेम का उदय होता है
Thursday, April 16, 2009
Guru Meri Pooja - Dedicated to H H Sri Sri Ravi Shankar
Guru Meri Pooja sung by Anil Hanslas, Album:Satguru Main Teri Patang.
Thursday, February 12, 2009
Transform youself - Knowledge points by Sri Sri Ravi Shankar
Transform youself - Knowledge points by Sri Sri Ravi Shankar - Must read or download
Sunday, February 1, 2009
This Drama
तुम किसके लिए अटके हुए हो? कब तक तुम इस खेल को, इस नाटक को खेलते रहोगे? क्या हो रहा है? हम्म?
The Human Body
प्रत्येक आत्मा के लिए, प्रत्येक इंसान के लिए यह आशा है की, वेह निःस्वार्थ प्रेम में जी सकता है. इसीलिए इंसान का शरीर इतना अनमोल है---क्योंकि इस शरीर में तुम्हारे पास यह योग्यता है की तुम हर अनचाहे नकारात्मक छाप को मिटा सकते हो.
Angels
God and Devotees
इश्वर सब जगह है. इश्वर पत्थर में है. इश्वर फूल में है. इश्वर कूडेदान में है. इश्वर सब जगह है, परन्तु भक्त सब जगह नहीं है. इसीलिए इश्वर अपने भक्तों के पीछे दौड़ता है. इश्वर को, भक्त बहुत प्रिय हैं, बहुत प्रिय.
Ego is Complicated
अंहकार वेह चाहता है जो बहुत कठिन है. वेह जीवन में सरलता को पहचान नहीं पता है. जीवन सरल है. अंहकार बहुत उलझा हुआ है.
Seeing God
Fall in Love with a Flower
यदि तुम फूल से प्यार कर बैठे हो, तुम उसकी प्रशंसा करते रहते हो और उस में डूब जाते हो, और तुम देखते हो की फूल निराकार में मिल जाता है. तुम उस शून्य को देख पाते हो जो उस फूल की गहराई में है.
Honoring is Divine Love
Incomplete and Infinite
प्रेम अधूरा है. और उसे अधूरा ही रहना है. यदि वेह पूर्ण हो जाता है, वेह अनंत खोज लेता है. जो कुछ भी पूर्ण हो चूका है, जो कुछ भी भरा है, सम्पूर्ण है, अर्थात तुमने सीमा खेंच्ली है, तुमने उसकी सीमा खोज ली है. प्यार को अनंत होने के लिए, अधूरा रहना होगा. जो भी अधूरा है वेह अनंत है.
Friday, January 23, 2009
The Big Mind
A big Mind---that is God. And your mind is part of that big Mind.
बड़ा दिमाग---जो इश्वर है. और तुम्हारा दिमाग उस बड़े दिमाग का एक हिस्सा है.
Seen and Unseen
यह सम्पूर्ण विश्व को तुम देखते हो, परन्तु तुम इश्वर को नहीं देखते---जो सम्पूर्ण विश्व का जीवन है
Nothing Else
There is nothing else that is more valuable than love in life.
जीवन में प्रेम से मूल्यवान कुछ भी नहीं है.
Not Much Different
तुम कार्य में, किसी में, हिंसा देखते हो और अपने मन् के भीतर तुम उस व्यक्ति के प्रति हिंसा अनुभव करते हो. तब तुम उस व्यक्ति से अलग नहीं हो जो हिंसा कर रहा है.
Thursday, January 15, 2009
Uninterrupted
Self Deception
हम में खास मुश्किल यह है की हम अपने साथ भी कुछ नहीं बांटते---अपने से धोखा. इसे तुम अपने को धोखा देना कहते हो, जब तुम अपने आप से ही सच्चे नहीं हो.
Anger is About the Past
Compliments and Insults
मन् की प्रवृति देखो: यदि दस अच्छे गुण हैं और एक नकारात्मक, मन् उस एक नकारात्मक में बंध जाता है. दस प्रशंसाएं और एक अपमान, मन् सब दस प्रशंसाएं भूल जाएगा. वेह एक अपमान पर अटक जाएगा और बार-बार इसी पर जाएगा.
Pulled in Two Directions
In Between
"मानव" इश्वर और जानवर की प्रवृति के बीच की लड़ी है.
Our Very Nature
ज्ञानी होना लक्ष्य को पाना नहीं है. बल्कि, अज्ञानता से, सारी परेशानियों से और तनाव से छुटकारा पाना लक्ष्य को पाना है. क्योंकि हमारी मूल प्रवृत्ति ज्ञानी होना है. इसीलिए, "मानव" और "इश्वर" दो
नहीं हैं. "मानव" उपरी आवरण है और "इश्वर" अंदरूनी.
Stay with the Question
"What is the purpose of my life?" This very question enlivens the human values in our system, in our self. But don't be in a hurry to find out an answer to this question. Be with the question. The question itself is like a tool by which you can become more deep within yourself.
"मेरे जीवन का क्या उद्देश्य है?" यह एक प्रश्न हमारे system में, हमारी आत्मा में मानवीय मौल्यों को प्रकाशित करता है. परन्तु इस प्रश्न के उत्तर को पाने में जल्दी मत करो. प्रश्न के साथ रहो. प्रश्न अपने में एक औजार है जिसके सहारे तुम अपने अन्दर की गहरी में उतर सकते हो.
Unending Desires
Tragic Cycle
जब तुम कहीं सुन्दरता को देखते हो, जब तुम किसी से प्रेम करने लगते हो, तुम्हारा अगला कदम होता है उस पर अधिकार करना, उसे पा लेना; और जब तुम उसे पा लेते हो, वेह अपनी महत्वपूर्णता खो देती है.
Love is Letting Go
प्रेम घुल जाने की , अदृश्य हो जाने की, मिल जाने की, एक हो जाने की प्रक्रिया है. प्रेम पूर्ण रूप से समर्पण की प्रकिर्या है.
Saturday, January 3, 2009
कुछ सीखें, कुछ भूलें और मुक्त हो जाएं
31 Dec 2008, 0000 hrs IST,नवभारत टाइम्स
श्री श्री रविशंकर प्रतिवर्ष हम नए साल का स्वागत दूसरों को खुशी और संपन्नता की शुभकामना देकर करते हैं।
संपन्नता का चिह्न क्या है? संपन्नता का चिह्न है मुक्ति, मुस्कान और जो कुछ भी अपने पास है उसे निर्भय होकर आसपास के लोगों के साथ बांटने की मन:स्थिति। संपन्नता का चिह्न है दृढ़ विश्वास कि जो भी मुझे चाहिए वह मुझे मिल जाएगा। 2009 का स्वागत अपनी आंतरिक मुस्कान के साथ करें। कैलंडर के पन्ने पलटने के साथ-साथ हम अपने मन के पन्नों को भी पलटते जाएं। प्राय: हमारी डायरी स्मृतियों से भरी हुई होती है। आप देखें कि आपके भविष्य के पन्ने बीती हुई घटनाओं से न भर जाएं। बीते हुए समय से कुछ सीखें, कुछ भूलें और आगे बढ़ें।
आप लोभ, घृणा, द्वेष तथा ऐसे अन्य सभी दोषों से मुक्त होना चाहते हो। यदि मन इन सभी नकारात्मक भावनाओं में लिप्त है, तो वह खुश व शांत नहीं रह सकता। आप अपना जीवन आनंदपूर्वक नहीं बिता सकते। आप देखें कि नकारात्मक भावनाएं भूतकाल की वजह से हैं और आप अपने उस भूतकाल को अपने वर्तमान जीवन के नए अनुभवों को नष्ट न करने दें। भूतकाल को क्षमा कर दें। यदि आप अपने बीते हुए समय को क्षमा नहीं कर पाएंगे, तो आपका भविष्य दुख से भर जाएगा। पिछले साल, जिनके साथ आपकी अनबन रही है, इस साल आप उनके साथ सुलह कर लें। भूत को छोड़ कर नया जीवन शुरू करने का संकल्प करें।
इस बार नववर्ष के आगमन पर हम इस धरती पर सभी के लिए शांति तथा संपन्नता के संकल्प के साथ लोगों को शुभकामनाएं दें। आर्थिक मंदी, आतंकवाद की छाया, बाढ़ तथा अकाल के इस समय में और अधिक नि:स्वार्थ सेवा करें। हम जानें कि इस संसार में हिंसा को रोकना ही हमारा प्राथमिक उद्देश्य है। इस विश्व को सभी प्रकार की सामाजिक तथा पारिवारिक हिंसा से मुक्त करना है। समाज के लिए और अधिक अच्छा करने का संकल्प लें। जो पीड़ित हैं उन्हें धीरज दें और समाज तथा राष्ट्र के प्रति उत्तरदायी बनें।
जीवन का आध्यात्मिक पहलू हमारे भीतर संपूर्ण विश्व, संपूर्ण मानवता के प्रति और अधिक अपनेपन, उत्तरदायित्व, संवेदना तथा सेवा का भाव विकसित करता है। अपने सच्चे स्वरूप में आध्यात्मिक भावनाएँ जाति, धर्म तथा राष्ट्रीयता की संकुचित सीमाओं को तोड़ देती हैं और हमें इस सृष्टि में सर्वत्र व्याप्त जीवन के सौंदर्य से अवगत कराती हैं।
इस वर्ष अपनी भक्ति को खिलने दें। उसे व्यक्त होने का अवसर दें। हमें अपने चारों ओर व्याप्त ईश्वर का, उसके प्रकाश का अनुभव करना चाहिए। आप के मन में इसे अनुभव करने की इच्छा होनी चाहिए। क्या आप में कभी यह इच्छा उत्पन्न हुई है -कि आप को श्रेष्ठतम शांति प्राप्त हो? संपूर्ण विश्व ईश्वरीय प्रकाश से व्याप्त है। जब आप गाते हैं या प्रार्थना करते हैं, तो उसमें पूर्ण तल्लीनता हो। यदि मन कहीं और उलझा हुआ है, तो सच्ची प्रार्थना नहीं हो सकती।
तुम एक मुक्त पंछी के समान हो। तुम पूर्णत: मुक्त हो। अनुभव करो कि तुम एक पंछी के समान उड़ना सीख रहे हो। उड़ना सीखो। यह तुम्हें स्वयं ही अनुभव करना होगा। जब मन तनाव मुक्त होता है, तभी बुद्धि तीक्ष्ण होती है। जब मन आकांक्षाओं और इच्छाओं जैसी छोटी-छोटी चीजों से भरा होता है, तब बुद्धि तीक्ष्ण नहीं हो पाती है। और जब बुद्धि तथा ग्रहण की क्षमता तीक्ष्ण नहीं होते, तब जीवन पूर्ण रूप से अभिव्यक्त नहीं होता, नए विचार नहीं बहते। तब हमारी क्षमताएं भी धीरे-धीरे कम होने लगती हैं। बाहर निकला वह पहला कदम ही आपके जीवन की बहुत सी समस्याओं का समाधान कर देगा। इसलिए सहज रहो, प्रेम से भरे रहो। अपने आपको सेवा में लगाओ। अपने जीवन का उत्सव मनाओ।
1/2/2009
Dissolve in Love
In Divine love you cease to exist, you dissolve, like a pinch of salt that dissolves in water, a grain of sugar that disappears and dissolves and allows just that Divinity to be there.
इश्वर तुम्हारा अस्तित्व नहीं रहता, तुम मिल जाते हो, जिस तरह चुटकी भर नमक पानी में मिल जाता है, चीनी का एक दाना जो अदृश्य हो जाता है और मिल जाता है और केवल उस ईश्वरीय तत्त्व को ही वहां रहने देता है.
1/1/2009
Punch yourself
You are holding your fist now. And often you punch your own nose
अब तुम अपनी मुट्ठी पकडे हुए हो. और अक्सर तुम अपनी ही नाक पर मुक्का मर देते हो.
12/31/2008
Feel Oneness
When you feel so much oneness with the Master that you don’t feel, “The Master is separate, I am separate; the Divine is separate, I am separate,” that is Divine Love.
जब तुम गुरु के साथ एकता महसूस करते हो की तुम्हें यह महसूस नहीं होता की, "गुरु अलग हैं, मैं अलग हूँ; इश्वर अलग है, मैं अलग हूँ," वेह इश्वर्य प्रेम है.
12/30/2008
When you look at someone else’s mistake, you should laugh at it and feel compassionate towards it; then you are able to save your mind. जब तुम किसी की गलती को देखते हो, तुम्हें उस पर हँसना चाहिए और उस के प्रति दया महसूस करनी चाहिए; तब तुम अपने दिमाग को बचा पाओगे.
12/29/2008
Take life not serious. If you take life very serious, then you are bound to be disturbed. The only way you can maintain your equanimity is to take it as a play, as a game, and not take anything too serious. जीवन को गंभीरता से मत लो. यदि तुम जीवन को बहुत गंभीरता से लोगे, तब तुम परेशां होने के लिए बाध्य हो जाओगे. तुम अपनी समता एक ही तरह से बनाये रख सकते हो की उसे एक नाटक की तरह समझो, एक खेल की तरह समझो, और कुछ भी बहुत गंभीरता से न लो.
12/28/2008
This word "bhajan" is very precious. "Bhaj" means "to share." Sharing what? Sharing all that the Divine is. "भजन"शब्द बहुत अनमोला है. "भज" का अर्थ है "बाँटना." क्या बाँटना? जो कुछ भी इश्वर है उसे बाँटना.
12/27/2008
God is responsibility---total responsibility इश्वर जिम्मेदारी है---पूर्ण जिम्मेदारी.