Saturday, June 28, 2008

6/27/2008

Servant and Beloved
There are only two relationships in which the mind can mind can burn, vanish, and dissolve---that is, surrender. And these two types of relationships: one is of servant, being a servant; as a servant, one can burn, vanish, dissolve. Another, as beloved; as beloved, one can burn, vanish and dissolve.
दो संबंधों मैं मन जलता है, गायब हो जाता है, और मिल जाताहै---वह है, समर्पण. और यह दो प्रकार के सम्बन्ध: एक सेवक का है, सेवक बन जाना, सेवक हो जाना, जिस मैं जलता है, गायब हो जाता है, मिल जाता है. दूसरा, प्रिया बनकर; प्रिया बनकर, जलता है, गायब हो जाता है, मिल जाता है।

6/26/2008

False Promises
The mind has promised you heaven, but it is taking you to hell. You have been chasing the mind; you’re trodding behind it. It increases the hunger and thirst in you by giving a little glimpse of joy here and there.
मन ने तुम्हे स्वर्ग का वादा किया है, परन्तु यह तुम्हे नरक मैं ले जा रहा है. तुम मन का पीछा कर रहे हो; तुम उस के पीछे हो। यह तुम्हारे अन्दर भूख और प्यास बद्धता है , तुम्हे इधर उधर की खुशियों की चोटी सी झलक दिखाकर।

6/25/2008

Not Dead
The world is not a dead place; the creation is not a dead place. It is solidified consciousness, and it is dynamic. And it is new. Every moment it is new.

दुनिया मरुस्थल नहीं है; सृष्टि मरुस्थल नहीं है. ये मजबूत चेतना है, और ये ग्यात्मक है. और ये नविन है. ये हर पल नविन है।

Tuesday, June 24, 2008

6/24/2008

Yoga vs. Depression
Yoga is to realize that your mind is dynamic, your life is dynamic. Depression is a sign of static understanding about life. When you feel everything in life is dead, static, there is nothing more, nowhere to go---that is when one gets depressed.

योग ये ज्ञात करता है की तुम्हारा मन् ग्यात्मक है, तुम्हारा जीवन ग्यात्मक है। शिस्तात्मक रूप से जीवन को समझना उदासी का लक्षण है। जब तुम ये महसूस करते हो की जीवन में हर वस्तु प्राणहीन है, शिश्तात्मक है, इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है, कहीं नहीं जा सकते---उस समय उदास हो जाते हो।

6/23/2008

Manifestations
Your brain is nothing but manifestation of consciousness। Your body is nothing but manifestation of consciousness. Intelligence, wherever you see it in the world, is manifestation of consciousness.

तुम्हारी बुद्धि कुछ नहीं केवल चेतना का प्रदर्शन है। तुम्हारा शरीर कुछ नहीं केवल चेतना का प्रदर्शन है. ज्ञान, संसार मैं तुम जहाँ भी देखते हो, चेतना का ही प्रदर्शन है।

6/21/2008

Consciousness and the body
You think the body makes the consciousness? No। Consciousness has made the body.
तुम सौचते हो तुम्हारा शरीर चेतना जागरूक करता है? नहीं।
चेतना ने शरीर बनाया है।

6/22/2008

The Presence of Consciousness
The planets move around the sun। Just the mere presence of the sun makes the planets go around. In the same way, the presence of consciousness---though it is not involved directly---its mere presence makes the body grow.

ग्रह सूरज की परिक्रमा करते हैं. केवल सूरज की ओउपस्थिति से ही ग्रहों परिक्रमा करते हैं। इसी तरह, चेतना की ओउपस्थिति---जबकि यह साक्षात् जुदा नहीं---उसकी केवल ओउपस्थिति से ही शरीर बढ़ता है।

6/20/2008

Spiritual Knowledge and Science
All possible advancements in any field you see today, either science or arts, originated as a thought, originated in that ocean of Intelligence।People talk about "science meeting spirituality" or "spirituality coming together with science" this is such an immature, childish statement. Spiritual knowledge *is* science. And science can never be away from spiritual knowledge. Because, spirit alone can bring the science up. They are two sides of the same coin.

प्रत्येक सम्भव उन्नति तुम किसी भी दिशा में देख लो, या तो विज्ञानं या कला, एक विचार से उत्पन्न हुई हैं, बुद्धि के सागर में उत्पन्न हुई हैं। लौग "विज्ञानं का आत्मज्ञान से मिलन" या "आत्मज्ञान विज्ञानं के साथ" के विषय में बातें करते हैं यह इतना अधुरा, लड़कपन वाकया है. आत्मज्ञान विज्ञानं *है*. और विज्ञानं कभी भी आत्मज्ञान से अलग नहीं हो सकता है। क्योंकि, आत्मा ही विज्ञानं को ऊंचा उठा सकती है। यह दो पहलू हैं एक सिक्के के।

6/19/2008

Everything is Consciousness
It's one consciousness that has become the body, has become the mind, has become the intellect and emotions, ego, self. Everything that you have in you is made up of one consciousness---like, every wave of the water is made up of the water itself and nothing other than water.

एक ही चेतना है जो शरीर बन चुकी है, मन् बन चुकी है, बुद्धि और भावनाएं, अहम्, आत्मा बन चुकी है।
जो कुछ भी तुम में है एक ही चेतना से बना है---जैसे, प्रत्येक लेहर पानी से बनी है और पानी के अतिरिक्त किसी से नहीं।

6/18/2008

Already Connected
The moment you feel a connection from your side, just know you have already been connected। Otherwise you won't even come anywhere near this knowledge, this path.
जिस घड़ी तुम्हे अपनी तरफ़ से संपर्क महसूस करते हो, केवल इतना जान लो की तुम पहले से ही संपर्क में हो।
नहीं तो तुम इस ज्ञान, इस राह के निकट आ ही नहीं पाते.

6/17/2008

No Rejects!
A master is like an ocean। Ocean is there, readily available. It does not reject anybody.

गुरु सागर के सामान होता है. सागर वहां है, पूर्णतया उपलब्ध है।
वेह किसी को भी अस्वीकार नहीं करता है।

6/16/2008

Move to the Center
From the object move on to the Center, move on to the Experiencer of pleasure. This is the way to have a continued experience, continued joy in life.

वस्तु से हटकर केंद्र में आओ, अनुभव्कारी के आनंद में आओ।
यही रास्ता है लगातार अनुभव, लगातार खुशी जीवन में रखने का.

6/15/2008

Move on to the Center
If you are touching something very nice, what is happening? A sensation is arising in your body। Now, put your attention on the sensation and move on to the center.

यदि तुम किसी बहुत अच्छी वस्तू को छूते हो, तो क्या होता है? तुम्हारे भीतर एक संवेदना उठती है। अब , अपना ध्यान उस संवेदना पर लाओ और अपने केन्द्र की और टालो।

6/14/2008

Withdraw your senses
Withdraw your senses from the object to its source, then the union happens, then the yoga happens. You look at something beautiful---now, take your attention from that something to the feeling of beauty that is arising in you.

अपनी इन्द्रियों को विषयों से वापस स्रोत की और लाओ, तब एकता होती है, तब योग होता है। तुम किसी सुन्दर वस्तु को देखते हो---अब , उस वस्तु से ध्यान हटा कर सुन्दरता की भावना ऊपर लाओ जो तुम्हारे भीतर उथल रही है।

6/13/2008

The Secret of Joy
You are the source of जोय

तुम्ही आनंद के स्रोत हो.

6/12/2008

How to Enjoy
We want to enjoy, but we do not even know how to enjoy. This is the whole problem. There is a way to enjoy, also. The rishis are not against anyone living in the world.

हम आनंदित तो होना चाहते हैं, परन्तु हम ये नहीं जानते की आनंदित कैसे हुआ जाये। येही सारी मुसीबत है। आनंदित होने का एक मार्ग भी है। ऋषि संसार में रहने वालों के विरुद्ध नहीं हैं।

6/11/2008

Pleasure and Pain
Whichever object is giving you pleasure, the same object will give you misery---the same thing will give you misery, pain। Like, apple pie is giving you joy, go on eating apple pie, and it will give you a stomach ache and what not.

जो वास्तु तुम्हे सुख देती है, वोह तुम्हे दुःख भी देती है---वहि वास्तु तुम्हे दुःख, दर्द देती है। जैसे, apple pie तुम्हे खुशी देती है, apple pie खाते जाओ, और वोह तुम्हे पेट का दर्द आदि देती है।

6/10/2008

Unlimited Joy
This is quite natural: your mind is not satisfied with limited joy. It wants unlimited joy. The desire of every mind is to go to the source where it is unlimited joy.
यह स्वाभाविक है: तुम्हारा मन सीमित आनंद से संतुष्ट नहीं है। वह असीम आनंद चाहता है। प्रत्येक मन की अभिलाषा है की वह उस स्रोत तक पहुंचे जहाँ असीम आनंद है।

6/9/2008

Limited Senses
Our senses have a limited capacity to enjoy, but the desire in the mind to enjoy is infinite। This is where opposition begins: the mind wants to enjoy, but your body is too tired to enjoy।

हमारे इन्द्रियों की आनंदित करने वाली शक्ति सीमित है, परन्तु मन मैं आनंदित होने की अभिलाषा अनंत है।
यहीं से विरौध आरंभ होता है: मन आनंदित होना चाहता है, परन्तु तुम्हारा शरीर इतना थक चुका है की वह आनंदित नहीं हो सकता।

6/8/2008

No End to it
There is no end to moving from scene to scene, from person to person, from thing to thing---whole life could be spent doing that। You can spend a whole life। But if you think joy is there, then uniting cannot happen, then you cannot bring all the strings of your Self together.

इसका कोई अंत नहीं है एक दृश्य से दुसरे दृश्य की और जाना, एक व्यक्ति से दौसरे व्यक्ति, एक वस्तु से दूसरी वस्तू की और जाना---सारा जीवन यही सब करते बीत जाता है। तुम सारा जीवन व्यतीत कर सकते हो, पर अगर तुम सौचते हो की खुशी इसी मैं है, तो एकता नहीं हो सकती। तुम स्वयमं के सारे धागे एकत्र नहीं कर सकते।

6/7/2008

Drop the rock!
You have to drop the rock in order to pluck the flowers।

तुम्हे फूल चुनने के लिए पत्थर गिराने ही होंगे.

6/6/2008

Holding On
If you are holding on to stones in your hands, your hands will not be free to take the diamonds and gold.

यदि तुम अपने हाथों मैं पत्थर पकडे रहते हो, तो तुम्हारे हाथ हीरा और सोना लेने के लिए खली नहीं रहेंगे.

Saturday, June 21, 2008

05/06/2008

Stuck in the Wrappings
The world is a beautiful package, the world is not bad. It's a wrapping paper to you. A beautiful gift is given to you with a very wonderful wrapping paper around it. But if you are stuck with the wrapping paper, the package of the gift, you will not even open it, you will not see the gift that has been given inside the package to you. This is what most people do.

संसार सुंदर पार्सल है, संसार बुरा नहीं है. यह तुम्हारे लिए आवरण है. एक सुंदर उपहार आकर्षक आवरण मैं लिपटा तुम्हे दिया गया है. परन्तु यदि तुम आवरण के साथ चिपक जाते हो, उपहार का पार्सल, तुम उसे खोलोगे भी नहीं, तुम उपहार को नहीं देखोगे जो तुम्हे पार्सल के अन्दर दिया गया है. यही बहुत से लौग करते हैं.

04/06/2008

Joy / Not Joy
This is what we see in the world today: everyone is moving towards joy, but people are not joyful। They are the opposite---miserable। Because they are clinging on to the sense objects rather than the source of joy.

येही है जो हम आज के संसार मैं देखते हैं, हर एक व्यक्ति खुशी की और जा रहा है, परन्तु लौग खुश नहीं हैं । वे इसके विपरीत हैं---दुखित हैं , क्योंकि वे खुशी के स्रोत की जगह इंद्रिय विषयों से बंधे हुए हैं ।

03/06/2008

Senses Lead Within
Each of the senses lead you to a point deep inside you that is the fountain of joy. Whether touch, sex, or sight, or music, or smell, or taste---the joy that is coming to you is coming from a source deep within.

हर एक इंद्रिय तुम्हारा नेत्रित्व ओउस बिन्दु तक करती है , जो तुम्हारे भीतर है, जो खुशी का फव्वारा है । या तो स्पर्श, काम वासना, या दृष्टि, या संगीत, या सुगंध, या स्वाद---से खुशी जो तुम तक पहुँच रही है , इसका श्रोत तुम्हारी आतंरिक गहरे मैं है ।

02/06/2008

Sensory Peaks
The peak of any sensory or sensual experience takes you inward.

जब भी इन्द्रिय शक्ति या इन्द्रिय सुख का अनुभव चोटी तक पहुँच जाता है । तुब वेह तुम्ह्ने भीतर की और ले जाता है ।

Monday, June 2, 2008

1/06/2008

You Can Choose
Thoughts simply arise---but you choose to act or not act। This is what awareness brings in you. If you are not aware, you simply act on the strongest impulse or strongest thought.

विचार तो उठते ही है ---परन्तु तुम चुनते हो की उन पर कार्य करना है या नहीं करना है । ये सजगता ही तुम मैं लाती है । यदि तुम सजग नहीं हो, तुम साधारणतया मजबूत प्रेरणा या मजबूत विचार पर कार्य करते हो ।

31/05/2008

Stupid Thoughts

It is impossible to know thoughts before they come। You know them as they come. And, if they are stupid, simply smile at them, laugh at them, and they will move away.

विचारों को आने से पूर्व जान लेना असंभव है ।उनके आने से ही तुम उन्ह्ने जान लेते हो। और, यदि वेह मूर्खतापूर्ण है, सरलतापूर्वक उन पर मुस्कुरा दो, हंस दो, और वेह चले जायेंगे ।

30/05/2008

No Gain, No Loss
The mere presence of the sun brings all the activity in the world। In the same way, your mere presence is a service, is the goal. There is no gain, no loss, no purpose, no defeat.

केवल सूरज की उपस्तिथि संसार मैं क्रियाशीलता लाती है । ठीक इसी तरह, केवल तुम्हारी उपस्तिथि ही एक सेवा है , एक लक्ष्य हैइसमे ना कोई लाभ, ना हानि, ना उद्देश्य, ना ही कोई हार है ।