Wednesday, September 10, 2008

9/6/2008

The Perpetual Dance
In nature, both destruction and creation are complementary. They are two steps---like day and night. All opposite values in nature, they all dance together. It has been that way since the beginning. It'll continue 'til the end.
प्रकृति
मैं, दौनो विनाश और सृजन एक दुसरे के पूरक हैं. यह दोउ तरीके हैं---जैसे दिन और रात. सृष्टि मैं सारे विपरीत गौण, एक साथ नाचते हैं. आरंभ से यह इसी तरह से है. अनंत तक ऐसा ही चलता रहेगा.

No comments: